सबसे अच्छी टीम वाली थी जब हमने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता और फिर 1975 में जब हमने विश्व कप जीता.
टीम जब टीम होकर खेले तभी फॉरवर्ड आगे बढ़ सकता है. जब ध्यानचंद खेलते थे तो उन्हें रूप सिंह, दारा जैसे खिलाड़ियों का साथ मिलता था. फॉरवर्ड खिलाड़ी चाहे राइट विंग खेले या लेफ्ट विंग खेले, अगर उन्हें बराबर फीडिंग होती रही, तभी उन्हें कामयाबी मिली. इसलिए अगर मैं सिर्फ एक खिलाड़ी की तारीफ़ करूं तो उचित नहीं होगा.
मेरे लिए तो हर खेल बराबर है. बस लोगों ने मुझे हॉकी में ज़्यादा पसंद कर लिया. क्रिकेट, बैडमिंटन और कबड्डी में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मैंने कमेंटरी की.
लेकिन हॉकी एक तेज़ रफ्तार खेल है. हम उसमें जीतते भी रहे. अपना राष्ट्रीय खेल भी मानते रहे. किसी खेल की अच्छे से जानकारी होना बहुत ज़रूरी है. मैं नए नियम भी पढ़ता रहता हूं. इसलिए लोगों का प्यार है कि मुझे हॉकी में पसंद किया. लेकिन मुझसे पूछे तो मुझे सबसे ज़्यादा हॉकी, एथलेटिक्स और क्रिकेट की कमेंटरी करना पसंद है.
जो मैंने सीखा है पिछले 30-35 साल में और डिमेलो जैसे कमेंटेटर से, वो ये कि दो चीज़ें बराबर होनी चाहिए - खेल का ज्ञान और भाषा. भाषा का व्याकरण, शब्दों का चुनाव, रफ्तार और फिर जैसे आप सब्ज़ी में नमक-मिर्च डालते हैं, वैसे ही किसी मौके पर श्रोताओं को ऐसी बात बताई जाए जिससे उन्हें लगे कि हां कमेंटेटर वहां पर है.
जैसे आप लंदन से कमेंटरी कर रहे हैं तो लंदन के बारे में बताएं, यहां के लोगों के बारे में बताइए. यहां की परंपराओं के बारे में बताइए. लेकिन खेल की कीमत पर नहीं. हां, अगर खेल को दिलचस्प बनाना है तो जैसे किसी तस्वीर को आप फ्रेम कर देते हैं तो और सुंदर लगती है तस्वीर. वैसे ही इन चीज़ों को शामिल कीजिए.
वो आजकल के नौजवान कमेंटेटर नहीं कर पाते. भले ही वे ये कह लें कि गेंद फलाने ने फलां को दी. यहां पास कर दी, वहां पास कर दी.
इंसान के सबसे वफ़ादार दोस्त कहे जाने वाले कुत्तों के बारे में आप कितनी बातें जानते हैं?
प्राणी शास्त्री और मानवविज्ञानी जॉन ब्रैडशॉ इंसानों और जानवरों के बीच के संपर्क और आपसी व्यवहार का अध्यायन करते हैं. 'इन डिफ़ेंस ऑफ़ डॉग्स' और 'एनिमल्स अमंग अस' किताबों के लेखक जॉन ब्रैडशॉ ने कुत्तों के अब तक के इतिहास का भी गहरा अध्ययन किया है.
उन्हीं से जानिए इंसान के पक्के और प्यारे से दोस्त से जुड़ीं 10 ऐसी बातें, जिनके बारे में शायद आपको पता न हो:
अमरीका और यूरोप में आज जो भेड़िए पाए जाते हैं, वे कुत्तों के दूर से रिश्तेदार हैं. इन भेड़ियों का डीएनए कुत्तों के डीएनए से 99 प्रतिशत मेल खाता है.
कुत्तों के कई आकार और कई सारी नस्लें हैं. इतनी नस्लें किसी भी जंगली या पातलू जानवर की नहीं हैं. इसके लिए भी इंसान ज़िम्मेदार है.
हालांकि, कुत्तों की शारीरिक विविधता की भी एक सीमा है.
सबसे छोटे आकार के चिवावा से लेकर सबसे बड़े कुत्ते ग्रेट डेन की शारीरिक संरचना उसी ढांचे पर बनी है, जैसी उनके पुरखे भेड़ियों की थी. भले ही सभी के आकार और नस्लें भिन्न हों मगर समानताएं भी काफ़ी हैं.
कुत्तों में कमाल की सूंघने की क्षमता जेकबसन या वोमेरोनेज़ल नाम के अंग के काऱण होती है जो इनके नथुनों और मुंह के ऊपरी हिस्से पर होता है.
वैज्ञानिकों को अभी तक पता नहीं चल पाया है कि इनमें यह अंग क्यों होता है. मगर बिल्लियों और अन्य जानवरों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि शायद यह क्षमता उनके पास इसलिए है ताकि वे अन्य कुत्तों द्वारा छोड़े गए संकतों को पहचान सकें.
कभी आपके मन में ख्याल आया है कि कुत्तों को दिखता कैसा है?
कुत्ते हरे, पीले और नीले रंग में तो हमारी तरह ही फ़र्क कर सकते हैं मगर उनकी आंखें लाल रंग को नहीं पकड़ पातीं.
कुत्तों को लाल रंग गहरा स्लेटी नज़र आता है.